उत्तराखंड

जाने आखिर क्या है ‘गुलदार कु दग्डिया’ अभियान

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देहरादून। उत्तराखंड सहित अन्य हिमालयी राज्यों में मानव और वन्यजीवों के बीच लगातार संघर्ष बढ़ता जा रहा है। इसका मुख्य कारण संरक्षित क्षेत्र का अभाव, जानवरों के बीच घनिष्ठता बढ़ना और आधुनिक युग में लगातार बढ़ रहा शहरीकरण है। अब वन विभाग, वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। इसके तहत कई जागरूकता कार्यक्रम, सेमिनार आदि का आयोजन किया जा रहा है। जागरूकता कार्यक्रमों से चमोली, उत्तरकाशी सहित कई अन्य जिलों में इसके सुखद परिणाम सामने आए हैं। पिथौरागढ़ में वन विभाग मानव और वन्य जीव संघर्ष को रोकने के लिए ‘गुलदार कु दगड़िया’ अभियान शुरू करेगा। इसमें लोगों को तेंदुए के बीच कैसे रहना है, मानव वन्यजीव संघर्ष कैसे कम हो आदि को लेकर कई कार्यक्रम चलाए जाएंगे। 

स्कूलों, शैक्षिक संस्थानों में चलाया जाएगा जागरूकता कार्यक्रम
भौगोलिक संरचनाओं की विविधता के कारण सीमांत जिला जैव विविधता से भरपूर है। इस कारण यहां मानव और वन्य जीव संघर्ष की घटनाएं बढ़ी हैं। पिछले तीन वर्षों में तेंदुए, भालू, जंगली सुअर सहित कई वन्य जीवों ने 21 लोगों को मौत के घाट उतारा है। इसी को देखते हुए पिथौरागढ़ वन विभाग गुलदार कु दगड़िया अभियान शुरू करने जा रहा है। इसमें जागरूकता कार्यक्रम चलाकर तेंदुए के बारे में भ्रांतियों का निवारण, तेंदुए के साथ जीना सीखना आदि की जानकारी दी जाएगी। कार्यक्रम के तहत स्कूलों, शैक्षिक संस्थानों में जागरूकता कार्यक्रम, सेनिमार आदि का आयोजन किया जाएगा। इसमें वन विशेषज्ञ लोगों को जंगली जानवरों की संबंध और क्यों मानव वन्य जीव संघर्ष बढ़ रहा है इसकी जानकारी देंगे।

मानव वन्य जीव संघर्ष बढ़ने के कारण 
मानव वन्यजीव संघर्ष बढ़ने का मुख्य कारण पशुओं और वन्यजीवों के साथ घनिष्ठ जुड़ाव और जंगली जानवरों के अनियंत्रित उपभोग है। आधुनिक समय में तेजी से हो रहे शहरीकरण और औद्योगीकरण ने वन भूमि को गैर-वन उद्देश्यों वाली भूमि बदलने के कारण वन्य जीवों के आवास क्षेत्र में कमी आ रही है। वन्यजीवों के मानव बस्तियों के करीब आने के कारण मानव और वन्यजीव संघर्ष बढ़ रहा है। 

जिले में वन्यजीवों के हमले में गई जानें

वर्ष         मौत

2019     08 
2020        06 
2021       07 

लगातार बढ़ रहे मानव और वन्य जीव संघर्ष को रोकने के लिए जल्द गुलदार को दगड़िया अभियान शुरू किया जाएगा। इसके तहत जिले भर के स्कूलों, शैक्षिक संस्थानों में जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएंगे। कार्यक्रम में लोगों और बच्चों को जंगली जानवरों की जानकारी दी जाएगी। साथ ही तेंदुए के बीच कैसे जीना है ये तमाम चीजें सिखाई जाएंगी। 
– कोको रोसे, डीएफओ पिथौरागढ़। 
 

उत्तराखंड में हुई 11 तेंदुओं की मौत
वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया (डब्ल्यूपीएसआई) के  जनवरी और फरवरी 2022 के जारी आंकड़ों के अनुसार बीते दो महीनों में देश भर में 28 बाघों की मौत हुई है, जिनमें सर्वाधिक नौ बाघों की मौत सिर्फ मध्यप्रदेश में हुई है। जबकि महाराष्ट्र में सात और कर्नाटक में पांच बाघों की मौत हुई है। उत्तराखंड में इस साल अब तक एक भी मौत दर्ज नहीं हुई है। इस साल अब तक 125 तेंदुओं की मौत हो चुकी है। मध्य प्रदेश 26 तेंदुओं की मौत हुई है। जबकि महाराष्ट्र में 27और उत्तराखंड में  11 तेंदुओं की मौत हुई है।



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