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भारतीय सेना की भर्ती प्रक्रिया में बड़े बदलाव की तैयारी, जानिए क्या कहते हैं सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ

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नई दिल्ली। भारतीय सेना की भर्ती प्रक्रिया में बड़े बदलाव की तैयारी हो रही है। हालांकि अभी इस नए बदलाव का आधिकारिक खाका सामने नहीं आया है, लेकिन इस पर सेना के पूर्व अफसरों ने सवाल उठा दिया है। सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ कैप्टन अनिल गौर (रिटायर्ड) का कहना है, अगर चार साल के लिए भर्ती होगी तो नाम-नमक-निशान की खातिर कोई भी गोली नहीं खाना चाहेगा। इतने अल्प समय की नौकरी में तो वक्त ही कटेगा, दुश्मन नहीं। ब्रिगेडियर अनिल गुप्ता (रिटायर्ड) कहते हैं, सेना के जवान में जुनून, केवल भर्ती या ट्रेनिंग से नहीं आता। टोली व झंडे के लिए एकजुटता बनानी पड़ती है, लंबे समय तक साथ रह कर सीखा जाता है। जो यह सोचकर आएगा कि चार साल नौकरी करनी है, तो वह खुद को योद्धाओं में शामिल नहीं कर पाएगा। ऐसे युवा, लड़ाई के लिए तैयार नहीं हो सकते। खर्च घटाने की कवायद के तहत केंद्र सरकार अगर यह बदलाव करना ही चाहती है, तो पहले प्रयोग के तौर पर श्टूर ऑफ ड्यूटीश् योजना को लागू करना था। नतीजे ठीक रहते तो ही उसे आगे बढ़ाया जाता।

ऐसे तो लड़ाई के लिए तैयार नहीं हो सकेंगे योद्धा
ब्रिगेडियर अनिल गुप्ता (रिटायर्ड) ने बताया, सेना में लंबे अनुभव के बाद ही कोई जवान, अपनी टोली व झंडे के लिए गोली खाने का जिगर तैयार करता है। उसके लिए एकजुटता का होना जरूरी है। वह महज तीन चार साल की नौकरी में नहीं आती। यूनिट में साथ रहना और खेलना भी इसी का हिस्सा है। जो यह सोचकर आएगा कि उसे तो बस चार साल नौकरी करनी है तो वह खुद को इन गतिविधियों में शामिल नहीं करेगा। पहले यह भी कहा गया था कि सेना से रिटायर होने वाले जवानों को श्सीएपीएफश् में ले लेंगे। वह योजना, आज तक लागू नहीं हो सकी। जो सैनिक चार साल के लिए आएगा, वह वक्त ही काटेगा। चीन ने गलवान और लद्दाख में मार खाई, क्योंकि वहां पर चार साल की सेना में नौकरी जरूरी है। वहां पर आर्मी के जवान यही सोचतें हैं कि किसी तरह सही सलामत घर चले जाएं।

जब यहीं पर श्जीना मरनाश् है तो ही जुनून बनता है
बतौर अनिल गुप्ता, चार साल की नौकरी में वह सैनिक दूसरी नौकरी के फार्म भरता रहेगा। दुश्मन, सीमा पर ताक में बैठा है, आतंकवाद व नक्सल की समस्या खत्म नहीं हुई है। ऐसे में सरकार अपना पेंशन बजट कम करना चाहती है। देश में यह सवाल हमेशा बना रहेगा कि श्बटर या गनश् पर कितना खर्च हो। अगर राष्ट्र को मजबूत बनाना है तो सेना को मजबूत करना होगा। अमेरिका ने वियतनाम में भी यह प्रयोग किया था। उसके नतीजे अच्छे नहीं रहे थे।

ऐसे में तो नक्सली-आतंकी उठा सकते हैं फायदा
सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ कैप्टन अनिल गौर (रिटायर्ड) कहते हैं, ये निर्णय पूरी तरह गलत है। ये सब पेंशन कम करने के लिए हो रहा है। जवान को चार साल के बाद जब रिटायर करेंगे तो उसे दस लाख रुपये दे देंगे। पेंशन भी नहीं होगी। ऐसे में सेना की नौकरी के लिए युवा आगे क्यों आएंगे। कुछ लोग इसका गलत फायदा उठा सकते हैं। जो भी जवान चार साल के बाद रिटायर होगा, उसे सेना के बहुत से सीक्रेट भी मालूम होंगे। किन्हीं परिस्थितियों में नक्सली व आतंकी समूह, इसका फायदा उठा सकते हैं। जिन्हें दूसरी नौकरी नहीं मिलेगी, वे हताशा में कोई भी गलत कदम उठा सकते हैं। शॉर्ट सर्विस कमीशन, पहले पांच साल का था, बाद में दस का हुआ और अब 14 साल तक है। वहां भी पेंशन की समस्या रहती है। आर्मी वालों को सीएपीएफ में ड्यूटी देना शुरू करें। वहां भर्ती बंद कर दें। यह नियम बनाया जाए कि अर्धसैनिक बलों में केवल आर्मी वालों को ही लेंगे। इससे सीएपीएफ में ट्रेंड लोग मिल जाएंगे। शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत भर्ती हुए अफसर भी मिल जाएंगे। अपने देश में एकाएक यह प्रयोग ठीक नहीं हैं। दुनिया में भारतीय सेना की एक साख है। उसे आघात पहुंच सकता है।

फैक्ट्री के बाहर खड़े होकर सेल्यूट मारेंगे जवान …
एक्स-सर्विसमैन ग्रीवांस सेल के अध्यक्ष साधू सिंह ने कहा, सरकार की यह नीति गलत है। वह पैसा बचाने के चक्कर में ये सब कर रही है। अभी सेना के अस्पतालों में स्टाफ पूरा नहीं है। सरकार, नौकरी देना नहीं चाहती। आर्मी में तीन साल से भर्ती नहीं हुई है। हर साल 60-65 हजार जवान रिटायर हो रहे हैं। इस अवधि में लगभग दो लाख से ज्यादा रिटायरमेंट हो चुके हैं। चार साल की भर्ती में, छह माह तो ट्रेनिंग में निकल जाएंगे। नौ महीने की छुट्टी भी देनी होती हैं। ऐसे में दो साल की नौकरी ही बचती है। इसके बाद जब युवा भर्ती होने को तैयार नहीं होंगे तो वहां जवानों को डबल ड्यूटी देनी पड़ेगी। मैन पावर, लगातार कम होती चली जाएगी। चार साल के बाद जवान को कोई नौकरी नहीं देगा। उसे फैक्ट्री के बाहर खड़े होकर सेल्यूट मारना होगा।

बॉर्डर पर कई निर्णय, लंबे अनुभव के बाद ही लिए जाते हैं। तीन-चार साल में तो वह अनुभव नहीं आएगा। कहां पर फायरिंग करनी है, सामने कोई पशु होगा या इंसान, इसका पता चार साल की सेवा में नहीं लगता। सरकार, लोगों को बेवकूफ बना रही है। चार साल में तो पूर्व सैनिक का दर्जा तक नहीं मिलेगा। अतीत में दस साल की सेवा के बाद नर्सें निकाल दी गई थी। उसके बाद उनका क्या हुआ, इसका अंदाजा लगा सकते हैं। ये एक स्टंट है। इस स्थिति में युवा न घर के रहेंगे न घाट के। फौजी का स्टेंप लगा होगा तो नौकरी भी नहीं मिलेगी।
इन देशों में अनिवार्य तौर पर लेनी होती है सेना की ट्रेनिंग …

इस्राइल में पुरुष और महिला, दोनों के लिए आर्मी सर्विस जरूरी है। ब्राजील में भी मिलिट्री सेवा अनिवार्य है। हर देश में भर्ती का तरीका और ट्रेनिंग की अवधि अलग अलग होती है। दक्षिण कोरिया में राष्ट्रीय सैन्य सेवा को लोगों के जीवन का अनिवार्य अंग बनाया गया है। कई देशों में कुछ लोगों को अनिवार्य भर्ती से छूट भी दे जाती है। उसके लिए अलग मापदंड बनाए गए हैं। रूस में भी एक साल की सैन्य सेवा अनिवार्य है। सीरिया में सैन्य सेवा अनिवार्य है, जिसकी अवधि करीब 18 माह है। सेना में सेवा न देने वालों को दंड मिलता है। स्विट्जरलैंड में पुरुषों के लिए सैन्य सेवा अनिवार्य है। तुर्की में लड़कों के लिए सेना सेवा अनिवार्य है। यूक्रेन, ऑस्ट्रिया, ईरान और म्यांमार में भी लोगों के लिए सैन्य सेवा करना अनिवार्य है।

सरकार ने टूर ऑफ ड्यूटी से निकाला अपने दबाव का तोड़
युवा हल्लाबोल के राष्ट्रीय संयोजक अनुपम ने कहा, सेना भर्ती की प्रतीक्षा में नौजवानों की आयु निकलती जा रही है। गांवों, शहरों के मैदानों में दिन रात मेहनत कर रहे युवाओं की उम्मीदें टूटने लगी हैं। सरकार अपना खर्च और दबाव, दोनों कम करना चाहती है। इसके लिए श्टूर ऑफ ड्यूटीश् का मसौदा तैयार किया जा रहा है। यह कदम, सेना भर्ती के लिए वर्षों से पसीना बहा रहे युवाओं के जुनून, उनकी देशभक्ति और सेना भावना का अपमान होगा। ये देश सेवा के साथ खिलवाड़ है ये मॉडल कई देशों में अनिवार्य सेना ट्रेनिंग के तौर पर लागू है। हमारे देश में सरकार इसे नियमित भर्ती का विकल्प बनाना चाहती है। युवाओं को सरकार की नीयत पर शक है। वो इसलिए है कि सरकार समय पर सेना भर्ती की प्रक्रिया को शुरू नहीं कर सकी। अपनी गलतियां छिपाने के लिए श्यूथ और सेनाश् के साथ खिलवाड़ शुरु कर दिया है। श्टूर ऑफ ड्यूटीश् मॉडल में युवाओं को ट्रेनिंग तो भारतीय सेना देगी, जबकि वे नौकरी कॉरपोरेट में करेंगे। सरकार का मॉडल तो ऐसा ही दिख रहा है। भारतीय सेना ज्वाइन करना और दूसरे विभागों में नौकरी, इसमें बहुत फर्क होता है। सेना में युवा श्जुनून और देश भक्तिश् की वजह से आते हैं। सेना में भर्ती होने के लिए युवाओं को कई वर्षों तक कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।

अल्पकालिक अनुबंध पर भर्ती, मतलब आर्मी की ट्रेनिंग …
एयर कमोडोर बीएस सिवाच (रिटायर्ड) के अनुसार, सेना भर्ती का एक मायना होता है। उसमें देश की सेवा के साथ-साथ प्यार होता है। अल्पकालिक अनुबंध पर भर्ती करने का मतलब युवाओं को आर्मी की ट्रेनिंग देना है। उनमें सेना के अनुशासन की भावना जागृत करना है। दूसरे देशों में इस तरह की भर्ती या ट्रेनिंग के प्रावधान हैं। जब युवाओं को सेना की ट्रेनिंग मिल जाएगी तो भले ही वे किसी दूसरे सेक्टर में काम कर रहे हों, जरूरत पड़ने पर वे आगे आ सकते हैं। लड़ाई में कई तरीकों से उनकी मदद ले सकते हैं। मुसीबत के समय में अगर जरूरी हुआ तो उन्हें फ्रंट पर लड़ने के लिए भेज सकते हैं। बहुत से लोग इस भर्ती को केजुअली ले लेते हैं। यही मान लें कि कम से कम उनका शरीर तो ठीक रहेगा। दूसरी तरफ सेना का खर्च कम होगा। रिक्तियों का दबाव कम किया जा सकेगा। इससे फौज को मजबूती मिलेगी। नई प्रक्रिया के तहत भर्ती होने वाले युवाओं को तीन साल पूरे होने पर ड्यूटी से मुक्त कर दिया जाएगा। उन्हें आगे रोजगार लेने में कोई दिक्कत न हो, इसके लिए सेना की तरफ से मदद की जाएगी। इसके लिए सरकार कॉरपोरेट जगत से बात कर रही है। सेना में भर्ती के बाद जब वे युवा दूसरे सेक्टर में जाएंगे तो उनके लिए नौकरी के कई नए रास्ते खुलेंगे।



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