जाड भोटिया समुदाय ने धूमधाम से मनाया लोसर पर्व, होली और दशहरे से किया पर्व का शुभारम्भ
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उत्तराखंड। जाड भोटिया समुदाय बहुल डुंडा में लोसर पर्व का शुभारंभ हो गया। देर शाम बग्वाल (दीपावली) मनाकर इसकी शुरूआत हुई। बृहस्पतिवार को ध्याणियों (बहू व बेटियों) का स्वागत कर लजीज पकवान परोसे गए। नए साल के स्वागत में तीन दिनों तक चलने वाले इस पर्व में समुदाय के लोग दशहरा, होली व दीपावली एक साथ मनाते हैं। भारत-चीन सीमा से लगे उत्तरकाशी जनपद में सीमा पर स्थित नेलांग-जाढूंग गांव से विस्थापित जाड भोटिया समुदाय के लोग हर्षिल, बगोरी व डुंडा में बसे हैं, जो कि बौद्ध पंचांग के अनुसार नए साल के स्वागत में हर्षोल्लास के साथ लोसर पर्व मनाते हैं। देर शाम चीड़ के छिल्लों से मशाल बनाकर बग्वाल मनाई गई।
आज होगा गांव के बुजुर्गों का स्वागत-सत्कार
ध्याणियों का स्वागत-सत्कार हुआ।आज गांव के बुजुर्गों का स्वागत-सत्कार होगा। इसके बाद शनिवार को आटे की होली खेली जाएगी। बताया कि लोसर में समुदाय की आराध्य रिंगाली देवी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस दौरान लोग अपने घरों पर लगे पुराने झंडों को हटाकर नए लगाते हैं। गांव के बुजुर्ग नारायण सिंह नेगी ने बताया कि झंडों पर पाली भाषा में लिखे मंत्रों के माध्यम से भगवान से सुफल की कामना की जाती है। पारंपरिक वस्त्रों में सजे लोग रांसो एवं तांदी नृत्य पर जमकर झूमते हैं। बताया कि पर्व पर सभी लोग पुराने साल के कष्ट भूलकर नए साल में सभी के लिए सुख-समृद्धि की दुआ मांगते हैं।
क्या है लोसर पर्व
चंद्रमा की परिक्रमा पर आधारित बौद्ध पंचांग में लोसर को नववर्ष का आगमन माना जाता है। तिब्बती भाषा में ‘लो’ का मतलब नया और ‘सर’ का मतलब साल होता है। बौद्ध परंपराओं का पालन करने वाले तिब्बती, भूटानी समुदाय के लोग इस त्योहार को मनाते हैं। तिब्बत में यह त्योहार 15 दिन तक चलता है।
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